REWA. नगर पालिक निगम रीवा के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में खांटी ब्राम्हण के ऐलान के बाद अब भाजपा अपनी रणनीति में आंशिक बदलाव करने की विवशता से जूझ रही है। कोर कमेटियों ने अभी तक यह तय नहीं किया है कि वह मेयर की चेयर के लिये ब्राम्हण समाज से प्रत्याशी चुने अथवा पार्टी के वोट बैंक माने जाने वाले वैश्य समाज से कोई चेहरा सामने लाए। पार्टी को इस बात का डर सता रहा है कि एक समाज से प्रत्याशी घोषित हुए तो दूसरा समाज छिटक कर विरोध में खड़ा हो सकता है जिस कारण चुनावी गणित फेल होने का अंदेशा है। कुल मिलाकर तराजू में मेढ़क तौलने की स्थिति में खड़ी भाजपा को अगले 24 घंटे में फैसला करना होगा। निर्णय के केन्द्र में चार विधायक और एक सांसद पांच दमदार ब्राम्हण लीडरशिप है जिसे नजर अंदाज करना कठिन होगा। अलहदा नगर निगम की मतदाता सूची में सर्वाधिक तादात ब्राम्हण मतदाताओं की है। पार्टी के शीर्ष कमेटियों में 24 घंटे से चल रहा मंथन अभी किसी नतीजे पर नही पहुंचा है।
मंत्रणा का विषय यह है कि कांग्रेस की तर्ज पर मुकाबले में ब्राम्हण वर्ग से प्रत्याशी उतारे अथवा एक बार फिर वैश्य समुदाय को मौका दिया जाय जिसके हासिये पर होने के संकेत पिछले कई चुनाव में मिल चुके है। आम तौर पर वैश्य समुदाय को भाजपा का कोर बैंक वोटर माना जाता है. लेकिन नेतृत्व में नगरीय निकाय को छोड़ दें तो बड़े चुनावों में इस वर्ग को उतनी तवज्जो नही मिली जितनी अपेक्षा रखी जाती है. हालाकि ये महज एक अनुमान है, लेकिन टिकट के ऐलान होने तक इस पक्ष को नकारा नही जा सकता। लोकसभा और 8 विधानसभा क्षेत्रों पर गौर करें तो चार विधायक और सांसद मिलकर पांच ब्राम्हण लीडरशिप है।
इसके अलावा दो ठाकुर और एक अनुसूचित जाति कोटे से विधायक हैं। जहां तक नगर निगम रीवा का सवाल है तो यहां भाजपा ने तीन बार वैश्य समाज से महापौर बनाये है. राजनीतिक जानकारों का यह भी मानना है कि विधानसभा 2018 के चुनाव में वैश्य समाज का छोटा सा हिस्सा भाजपा से अलग होकर कांग्रेस की ओर चला गया था जिससे भाजपा के कान खड़े हो गए। भारतीय जनता पार्टी के समक्ष टिकट और जातीय समीकरण साधने की चुनौती है। देखना यह है कि नगर निगम का यह चुनाव ब्राम्हण बनाम ब्राम्हण के रूप में सामने आता है अथवा ब्राम्हण वर्सेस वैश्य के बीच चुनावी बिसात बिछती है।
जिला और संभाग कोर कमेटी में पैनल तय
भारतीय जनता पार्टी की जिला और संभाग कोर कमेटी गत दिवस हुई बैठक में उम्मीदवारों के पैनल तय हो गए है हालाकि उक्त बैठक को जिला पंचायत के चुनाव और उसमें भारतीय जनता पार्टी की संगठनात्मक भूमिका को लेकर रणनीति तय करने वाली बैठक कहा जा रहा है लेकिन उक्त बैठक में नगर निगम में मेयर पद को लेकर भी चर्चा हुई यह बैठक जिलाध्यक्ष डॉ. अजय सिंह के घर पर हुई। सूत्रों का कहना है कि बैठक में प्रबोध व्यास, व्यंकटेश पाण्डेय, विवेक दुबे, वीरेन्द्र गुप्ता के नाम पर चर्चा हुई है। एक नाम और है जिसकी चर्चा भाजपा के किसी प्लेटफार्म पर नहीं होती, केवल राष्ट्रीय स्वयं संघ के स्वयं सेवक उक्त नाम का जिक्र करते हैं और वह नाम है आरएसएस की शिक्षा भारतीय नामक संगठन से जुड़े अधिवक्ता संतोष अवधिया का। आरएसएस अवधिया को भारतीय जनता पार्टी के मेयर के रूप में चुनाव मैदान में उतारने पर विचार कर चुका है। अब देखना यह है कि भाजपा आरएसएस के प्रस्ताव को तवज्जो देती है या राजनीतिक निर्णय हावी होता है।
अब तक ब्राम्हण को ननि में नहीं मिला मौका
एक बात और है जो भारतीय जनता पार्टी को बार-बार परेशान कर रही है। वह है मेयर पद पर भाजपा की ओर से ब्राम्हण वर्ग से उम्मीदवारी, इसके पहले तीन बार वैश्य, एक बार क्षत्रिय, एक बार पिछड़ा वर्ग से उतारे गए प्रत्याशी नगर निगम में मेयर पद का दायित्व निभा चुके है। यह पहला चुनाव है जो पुरूष वर्ग के लिये अनारक्षित कोटे से हो रहा है। ऐसे में ब्राम्हण समाज की ओर से हो रही दावेदारी को कम नही आका जा सकता।
ठहर गई सूई
पार्टी के विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि रीवा नगर निगम में प्रत्याशी को लेकर दो दिन पूर्व भोपाल में बैठक हुई लेकिन कोर कमेटी, संगठन के बीच किसी एक नाम पर सहमति नही बन पाई। बताया जाता है कि जिन नामों के लिये स्थानीय छत्रपों द्वारा सिफारिश या पैरवी की जा रही है, उनके अतीत के रिकार्ड राह का रोड़ा बन गए है। संगठन कुछ सालों पहले भाजपा में आए दावेदारों के दावे को सिरे से खारिज कर दिया है। साथ ही कहा गया है कि पार्टी, संगठन की जिला इकाई और स्थानीय लीडरशिप रीवा में बैठकर नाम तय कर सोमवार शाम तक पार्टी मुख्यालय भोपाल भेजें। अंतिम निर्णय भोपाल से लिया जायेगा। इसी सिलसिले में सोमवार सुबह अटल कुंज में पार्टी की जिला और संभाग स्तरीय बैठक होने जा रही है।
तो वैश्य अवश्य कूदेगा मैदान में
लगातार बदलते राजनीतिक परिदृश्य इस बात का संकेत देने लगे हैं कि पार्टी नजर निगम में इस मर्तबा ब्राम्हण मतदाताओं को नाराज करने की स्थिति में नही है। ऐसे में किसी ब्राम्हण चेहरे को भाजपा से टिकट मिलने की ज्यादा उम्मीद है। स्थानीय छत्रप और कोर कमेटी के सदस्य पूर्व मंत्री राजेन्द्र शुक्ल की भी मंशा इस मर्तबा पार्टी के ब्राम्हण कार्यकर्ता को टिकट देने के पक्ष में है। ऐसे में वैश्य समुदाय से किसी नेता के मैदान में कूदने के आसार भी है। माना जा रहा है कि नाराज वैश्य समाज नगर निगम में मेयर की लड़ाई में उतरता है तो इसका सीधा और बड़ा असर भाजपा की सियासत पर पड़ेगा। अब तक निगम चुनाव में अजेय रही पार्टी को हार का सामना भी करना पड़ सकता है।
किस समाज के कितने मतदाता
ब्राह्मण: 55 000, वैश्य: 26000, एसी/एसटी : 25000, ओबीसी : 26000, ठाकुर: 7000, पटेल : 8000